Saturday, September 6, 2014

आदमी क्या चाहता है?

आमावस्या के टिमटिमाते तारों की फ़ौज के बीच से
पूर्णिमा की निर्मल विभा के बीच भागते हुए
मन बार-बार यही पूछता है-
आदमी क्या चाहता है?

रंगहीन, रव-हीन आकाश की शून्यता से भागकर  
इन्द्रधनुषी रंगों के बीच खड़ी वयसहीन आकृतियों से लिपटते हुए  
ध्वनित मन बार-बार यही पूछता है-
आदमी क्या चाहता है?

जय और पराजय की कुटिल कलाबाजी में
व्यर्थ विभ्रांतियों से म्लात, द्विधा-जात
मौली-लोलुप मन बार-बार यही पूछता है-
आदमी क्या चाहता है?

मृत्यु और जीवन के गवेषित पथों के बीच से
दीदारू किरण-पुंजो की लालसा में
विसौख्य धरे मन, बार-बार यही पूछता है-
आदमी क्या चाहता है?

मरु-कूपों को उलछने की जिद लिए
निष्ठ, अक्लांत मनु-सुतों से
मृन्मयी सांचा बार-बार यही पूछता है-
आदमी क्या चाहता है?

नागरी-जंग में लास-रत बेहोशों से
फूस के अपने घरों से दूर किये कोसों से
अर्थ-सिन्धु में पन्न, पतित के दोषों से
पश्चिम में धमके श्लेषित रूपोशों से
मन बार-बार यही पूछता है-
आदमी क्या चाहता है?

महलों के खंडहरों में कुत्ते भौंकते है
सभागारों में चुड़ैलें पायल बजाती है
सितारों के तार कसे हुए हैं
अफ़सोस !नहीं कोई यहाँ बसे हुए हैं
क्षणिक स्थैर्य के इन्ही प्रतिमानों से
मन बार-बार यही पूछता है-
आदमी क्या चाहता है?


(निहार रंजन, ऑर्चर्ड स्ट्रीट, ६ सितम्बर २०१४)

9 comments:

  1. बहुत सुंदर ... आदमी जो चाहता है उसे पाकर भी वह रिक्त ही रहता है ... बिलकुल शून्य क्योंकि अपनी चाहत मे आदमी पूर्णता से दूर होता जाता है ।

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  2. सही में आदमी क्‍या चाहता है? बहुत ही सुन्‍दर।

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  3. एक यही तो बात ताउम्र भी नहीं जान पाता आदमी खुद भी ...
    शायद यही माया है ...

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  4. अच्छी रचना !
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है !

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  5. वाह निहारजी, सच कितनी खूबसूरती से आपने ह्रदय की बात कही है. देरी के लिए माफ़ी

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  6. वाह...सुन्दर और सामयिक पोस्ट...
    समस्त ब्लॉगर मित्रों को हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं...
    नयी पोस्ट@हिन्दी
    और@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ

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  7. सब कुछ पाकर भी निरंतर कुछ अधिक पाने की चाह क्या पता
    मृन्मयी सांचे में चिन्मय को देखने की चाह हो शायद मन को !
    बढ़िया रचना निहार जी, !

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  8. Aadmi kayi baar wo chaahta hai jise paa sakta hai kayi baar wo jise paane ki haisiyat nhi lekin kitna bhi paa le haamesha paane ki lalak barkaraar rahti hai..... Bahut arthpurn rachna!!

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  9. दार्शनिक उत्तर में तो केवल मृत्यु ही है जो जीवन पर्यन्त आदमी सबकुछ करने के साथ -साथ चाहता है , किसी अमरता की कल्पनाओं में..

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