Thursday, August 28, 2014

परिवर्तन

विहान की पहली भास से
दिवस के अवकाश तक
पल-पल में सब, है जाता बदल
परिवर्तन रहा अपनी चाल चल

चढती, बढती, ढलती धूप
रात्रि का भीतिकर स्वरुप
लौटे विहग अपने नीड़ों में
जो गए थे प्रात निकल
परिवर्तन रहा अपनी चाल चल

पोटली लिए किसान
चले हैं  देख आसमान
हो अन्नवर्षा या अकाल
इस मौसम से उस मौसम
दाने से पौध, पौध से फसल
लिए ह्रदय में अकूत बल
कहाँ रुका है उनका हल

बालपन से तरुणाई
तरुणाई से हरित यौवन
ढीली होती त्वचा, घटती शक्ति
बढती हुई ईश्वर भक्ति
चार कंधो पर सेज, निर्याण
वही आत्मा, नयी जान
हाय रे जीवन का खेल
नित वही ठेल, रेलमपेल   

मौसम का हर महीने बदलता तेवर
हर शाम झींगुरों का बदलता स्वर
पर्वत शिखरों पर हिमपात
वहीँ अभ्युदित होता जल-प्रपात
नदी बहकती चली, हेतु सागर मिलन
भाप बन पानी का यूँ सतत रूप-गमन
जी हाँ! परिवर्तन ही परिवर्तन


(ओंकारनाथ मिश्र, सेंट्रल, ११ अगस्त २०१३)

16 comments:

  1. परिवर्तन ही प्रकृति का यथार्थ है॥ इस परिवर्तनवादी सृष्टि का अपनी कविता मे सुंदर चित्रण किया है आपने ॥

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  2. खुबसूरत अभिव्यक्ति जीवन की सच्चाई की ..... उम्दा रचना

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  3. कल 30/अगस्त/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  4. कितनी खूबसूरती से परिभाषित किया है परिवर्तन को !प्रभावी ...बहुत सुंदर रचना .....!!

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  5. प्रकृति के रूप से सराबोर बेहद सुंदर लगी रचना

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  6. परिवर्तन भावी सुन्‍दर अहसास। बहुत सुन्‍दर। जो है प्रकृति में ही है।

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  7. बहुत खूबसूरत रचना

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  8. बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ..जीवन यथार्थ को परिलक्षित करती ...सुन्दर रचा आप ने
    भ्रमर ५

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  9. vastvikta prastut karti rachna....parivartan shrishti ka niyam hai

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  10. परिवर्तन तो प्रकृति का नियम है.......... बहुत ही हुआ है सुन्दर शब्दों में परिवर्तन परभाषित.....

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  11. प्रकृति रोज बदल रही है बदलाव प्रकृति का नियम है, हम भी उसी प्रकृति के अंश ही तो है, जो बदलने को राजी होता है वो प्रकृति के साथ चलता है जो राजी नहीं होता वो तनाव में जीता है ! बेहतरीन रचना !

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  12. पोटली लिए किसान
    चले हैं देख आसमान
    हो अन्नवर्षा या अकाल
    इस मौसम से उस मौसम
    दाने से पौध, पौध से फसल
    लिए ह्रदय में अकूत बल
    कहाँ रुका है उनका हल....यही जीवन है, प्रतिकूल परिस्थितियों में भी चलना तो तय है ! सुंदर, सवेदनशील रचना !

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  13. ये परिवर्तन ही तो अहि जो है हर जगह हर पल ... बाकी तो सब मात्र कठपुतली हैं उसके अनुसार ... लाजवाब भावपूर्ण ...

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  14. सच को उजागर करती अदभुत रचना
    बहुत सुन्दर
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    सादर ---

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