Saturday, July 6, 2013

व्योम के इस पार, उस पार

एक भुजंग, एक दादुर
भुजंग क्षुधा आतुर
दादुर बंदी यतमान
भीत भ्रांत भौरान
संफेट का नहीं प्रश्न
बस निगीर्ण  प्राण
ना उल्लाप ना आह
विधि का विधान  

एक वरिष्ठ, एक कनिष्ठ
वरिष्ठ का रौरव नाद
कनिष्ट प्रनर्तित, नाशाद
वश्य, विकल्पित, विकांक्ष
अवधूत, यंत्रित, निर्वाद
पर-भार से लादमलाद
अभीप्सित सतत परंपद
बर्बाद,  जीवन आबाद

एक ग्रह, एक लघु-पिंड
ग्रह-गुरुता का अहर्निश प्रहार  
लघु-पिंड, बलाकर्षित लाचार
निरुपाय, निरवलंब, निराधार  
सदैव सचिंत मुक्ति आकुल
अस्तित्व भय दुनिर्वार
सकल व्योम में यही खेल
इस पार, उस पार

(निहार रंजन, सेंट्रल, ५ जुलाई २०१३)

यतमान = यत्न करता हुआ ( मुक्ति के लिए)
भौरान = भौंराया हुआ 
संफेट = तकरार 
निगीर्ण = जो निगला गया हो 
रौरव = भीषण 
प्रनर्तित = जिसे नृत्य कराया गया हो 
दुनिर्वार = जिसका निवारण ना किया जा सके   

24 comments:

  1. रोचक अभिव्यक्ति
    कुछ मेरे लिए नए शब्द मिलते हैं
    बहुत अच्छा लगता है

    ReplyDelete
  2. बहुत ही गहन, अलंकृत रचना निहार भाई।
    वैसे तो आपकी रचनाओं में शब्दों का सुन्दर संकलन मिलता ही है, पर इन शब्दों के सार्थक और सटीक योग से जो भाव निकले हैं, वो सोने पे सुहागा है। खासकर अंतिम पंक्तियों ने दिल जीत लिया।
    इसी बात पर मंथन करते हुए कुछ और विचार आयें मन में. मनुष्य की क्षुद्रता और परमात्मा का परम स्वरुप भी शायद कुछ ऐसा ही खेल है। पता है कि गति अंततः उसी में लिखी है, फिर भी मृत्युलोक में कई वृत्तियाँ विपरीत चुम्बकीय शक्ति की तरह हमें रोके रखतीं हैं।

    ReplyDelete
  3. .विचारणीय बहुत सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति आभार क्या ये जनता भोली कही जाएगी ? # आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -5.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN लड़कों को क्या पता -घर कैसे बनता है ...

    ReplyDelete
  4. बलवान हमेशा ही निर्बल पर हावी रहता है .... सुंदर अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  5. निश्चित ही व्‍योम के इस पार तो यही हो रहा कि बाहुबली दीनहीन पर हावी हैं, उनकी सहायता के लिए नहीं उन पर अमानवीयता बर्बरता का व्‍यवहार करने के लिए। आपके लिखे कई विशुद्ध शब्‍द समझ नहीं आए। जैसे .....दुनिर्वार,प्रनर्तित,रौरव,निगीर्ण


    .....क्‍या दादुर का अर्थ मेंढक से है।

    ReplyDelete
  6. ye to bahtt praghad Hindi hai..kindly provide a simple translation :)

    ReplyDelete
    Replies
    1. AS, let me try if I can recreate this poem in another way keeping its meter.

      Delete
  7. रोचक ... शब्द विन्यास लाजवाब ... अभिव्यक्ति प्रखर दिखाई देती है ...
    बहुत ही सुन्दर रचना ...

    ReplyDelete
  8. बहुत ही गहन, अलंकृत रचना निहार भाई।

    ReplyDelete
  9. अलंकृत भाषा और भाव भी बढ़िया ....गहन ...उत्कृष्ट रचना ...!!

    ReplyDelete
  10. रोचक रचना .......अच्छी अभिव्यक्ति .......!!

    ReplyDelete
  11. अरे बाबा......इतनी जबरदस्त हिंदी कई बार अपने सर के ऊपर से निकल जाती है :-)

    एक ग्रह, एक लघु-पिंड
    ग्रह-गुरुता का अहर्निश प्रहार
    लघु-पिंड, बलाकर्षित लाचार
    निरुपाय, निरवलंब, निराधार
    सदैव सचिंत मुक्ति आकुल
    अस्तित्व भय दुनिर्वार
    सकल व्योम में यही खेल
    इस पार, उस पार

    अति सुन्दर ।

    ReplyDelete
  12. और मध्य में जीवन लेता है आकार , कितना भी करो प्रतिकार.. अत्यंत सुन्दर कृति..

    ReplyDelete
  13. सच ही कहा आपने हर जगह एक ही खेल जारी है
    सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  14. वाह ..
    अनूठी रचना ! बधाई आपको !

    ReplyDelete
  15. सकल व्योम में यही खेल
    इस पार, उस पार
    सही कहा है इस पार उस पार
    सबल द्वारा निर्बल को निगलने का खेल चल रहा है !
    सुन्दर रचना ...

    ReplyDelete
  16. एक ग्रह, एक लघु-पिंड
    ग्रह-गुरुता का अहर्निश प्रहार
    लघु-पिंड, बलाकर्षित लाचार
    निरुपाय, निरवलंब, निराधार
    सदैव सचिंत मुक्ति आकुल
    अस्तित्व भय दुनिर्वार
    सकल व्योम में यही खेल
    इस पार, उस पार
    bhai Ranjan ji bahut hi sundar prastuti lagi .....hindi bhasha ke naye naye shabd bhi mil gye hain mujhe .....aabhar.

    ReplyDelete
  17. एक ग्रह, एक लघु-पिंड
    ग्रह-गुरुता का अहर्निश प्रहार
    लघु-पिंड, बलाकर्षित लाचार
    निरुपाय, निरवलंब, निराधार
    सदैव सचिंत मुक्ति आकुल

    ...बहुत सटीक...यह खेल सदैव चलता रहा है..बहुत सुन्दर रचना...

    ReplyDelete
  18. वाह क्या बात है ...

    ReplyDelete
  19. इस पार प्रिये तुम हो मधु है उस पार न जाने क्या होगा ?
    क्यों यह पंक्ति सहसा याद आयी मुझे ?

    ReplyDelete