Saturday, February 23, 2013

प्रिये तुम चलोगी साथ मेरे?



महान निर्देशक गुरु दत्त के फिल्मों का मैं बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ. उनकी मशहूर  फिल्म 'प्यासा' कई बार देखी है.  फिल्म के  आखिरी दृश्य में वो कोठे पर पहुँच वहीदा रहमान को बुलाते हैं और "साथ चलोगी?" प्रश्न के साथ   फिल्म का समापन हो जाता है.  यह  कविता उसी  फिल्म प्यासा के आखिरी दृश्यों प्रेरित है और इस महान कलाकार को समर्पित है.

प्रिये तुम चलोगी साथ मेरे?

उबड़-खाबड़ कंकड़ पत्थर, यही मार्ग का परिचय है
ना पेड़ों की छाया ना पनघट चलो अगर दृढ निश्चय है   

हम नहीं ख्वाब दिखाने वाले इन्द्रलोकी काशानों के
अपनी बगिया में नहीं मिलती खुशबू जूही बागानों के

ना रोशन हैं राहें अपनी, पल पल ही टकराना होगा
गिरते उठते गिरते उठते इस पथ पर तुम्हे जाना होगा   

भूखे प्यासे दिन गुजरेंगे,  भूखी प्यासी रातें होंगी  
तेज हवाएं भीषण गर्जन साथ लिए बरसातें होंगी

जीवन ताप परीक्षा होगी, होगी असलियत की पहचान
निखर कर बाहर निकलोगी गर हो तुम स्वर्ण समान  

अपने हिस्से में कुछ दागदार फूल है, कर दूं अर्पण?
पर अन्दर अथाह प्रेम है, खोलो पट देखो मेरा मन   

इस अनिश्चय के डगर में, चलोगी पकड़ तुम हाथ मेरे ?
आज कह दो तुम प्रिये गर चल सकोगी साथ मेरे

निहार रंजन, सेंट्रल, २-२३-२०१३ 



7 comments:

  1. ये संभव है क्या? इक्सवीं सदी में इस तरह कि प्रिया का मिलना अंसभव नहीं है पर मुश्किल तो जरुर है

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    1. रोहिताश जी, गुरु दत्त के जमाने में भी ऐसा ही था:) निजी ज़िन्दगी में तो वह साथ नहीं मिला पर फिल्म के अंत में वो वहीदा जो को साथ ज़रूर ले गए :)

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  2. बहुत उम्दा पंक्तियाँ ..... वहा बहुत खूब
    मेरी नई रचना
    खुशबू
    प्रेमविरह

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  3. मन और अंतर्मन की भूल भुलैया में कब क्या हो जाए, कोई नहीं जानता....
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    खोये हुए अवसरों का नाम ही जीवन है.. और ये जिन्दगी कदम दर कदम हमसे कुछ न कुछ छीनती रहती है ..

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  4. Saathi sacchi ho toh bilkul chalegi saath mein... raheinn chahen kitni bhi mushquil hon, ye saath hi toh sabkuchh asaan kar jaata hai..
    sundar rachna Nihar bhai .. :)

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  5. हर पाठक कविता में अपने बिंब ढूँढता है आपने प्यासा की अंतिम पंक्तियों के साथ कविता रची और पूरी कविता पढ़ने के बाद रामायण का बिंब मुझमें उपस्थित हो गया। वनवास के लिए राम निकलने वाले हैं उनकी आँखों में सीता जी के लिए यही प्रश्न रहे होंगे। सचमुच प्रेम की असली परीक्षा त्याग से ही शुरू होती है।

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  6. उत्कृष्ट बिम्ब ..... संबंधों में स्वीकार्यता हो तो सब संभव है....

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