Sunday, February 17, 2013

रात की बात



रात की बात

जब आसमाँ  से गुम हो निशाँ आफताब के
हो माह में डूबा ज़माना, रात को आना

पाओगी सितारों की झलक, जुगनू भी मिलेंगे
उस पर यह मौसम सुहाना, रात को आना

जो सादादिली तुझमे, शोखी है, अदा है
हो जाए न ये जग दीवाना, रात को आना

सौ लोग है हाजिर लिए खंज़र वो अपने हाथ
उनसे जरा खुद को बचाना, रात को आना

कुछ हर्फ़ हैं जो अब तलक उतरे ना हलक से
आज गाऊँगा दिलकश तराना, रात को आना  

(निहार रंजन, सेंट्रल, १-१०-२०१२ )

Aftaab  = Sun
Maah   = Moon
Shokhi  = Playfulness
Harf    = Words
Halaq   = Throat



7 comments:

  1. कुछ हर्फ़ हैं जो अब तलक उतरे ना हलक से
    आज गाऊँगा दिलकश तराना, रात को आना

    हृदय के गहन उद्गार ....बहुत सुंदर अभिव्यक्ति .....

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  2. क्या बात ......बेहतरीन।

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  3. सौ लोग है हाजिर लिए खंज़र वो अपने हाथ
    उनसे जरा खुद को बचाना, रात को आना ..

    वाह .. बेहतरीन शेर ... मज़ा आया ..

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  4. सौ लोग है हाजिर लिए खंज़र वो अपने हाथ
    उनसे जरा खुद को बचाना, रात को आना
    sunder abhivyakti .

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  5. वाह....
    बेहद खूबसूरत ग़ज़ल....

    अनु

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  6. वाह निहार रंजन जी वाह !!

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