Sunday, January 20, 2013

पंथ निहारे रखना

पंथ निहारे रखना

छोड़ दो ताने बाने
भूल के राग पुराने
प्रेम सुधा की सरिता
आ जाओ बरसाने

प्रियतम दूर कहाँ हो
किस वन, प्रांतर में  
सौ प्रश्न उमड़ रहे हैं
उद्वेलित मेरे अंतर में

जीवन एक नदी है
जिसमे भँवर हैं आते
जो खुद में समाकर
दूर हमें कर जाते

ये सच है जीवन का  
लघु मिलन दीर्घ विहर है
फिर भी है मन आह्लादित
जब तक गूँजे तेरे स्वर हैं

देखा था जो सपना
वो सपना जीवित है
प्रीत के शीकर पीकर
प्रेम से मन प्लावित है
___________________
....प्रिय पंथ बुहारे रखना
हो देर मगर आऊँगा
वादा जो किया था मैंने  
वो मैं जरूर निभाऊंगा.

(निहार रंजन, सेंट्रल, १-२०-२०१३)


13 comments:

  1. अबकी पढ़कर बस एक ही शब्द निकला - 'वाह'!
    अति उत्तम, प्यारी रचना है।
    सादर
    मधुरेश

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  2. प्रिय पंथ बुहारे रखना
    हो देर मगर आऊँगा
    वादा जो किया था मैंने
    वो मैं जरूर निभाऊंगा.

    बेहतरीन पंक्तियाँ

    सादर

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  3. प्रिय पंथ बुहारे रखना
    हो देर मगर आऊँगा
    वादा जो किया था मैंने
    वो मैं जरूर निभाऊंगा.

    बहुत ही सुन्दर भावाभियक्ति ,,,,

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  4. प्रिय पंथ बुहारे रखना
    हो देर मगर आऊँगा
    वादा जो किया था मैंने
    वो मैं जरूर निभाऊंगा....

    प्रेम में पगे धब्द ... भावपूर्ण ... इस प्रेम को यूं ही बनाएँ रखें ...

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  5. प्रिय पंथ बुहारे रखना
    हो देर मगर आऊँगा.....bhawpoorn....

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  6. प्रिय पंथ बुहारे रखना
    हो देर मगर आऊँगा
    वादा जो किया था मैंने
    वो मैं जरूर निभाऊंगा
    वो आया या ना आया
    मैं आ गई कहने ....
    लाजबाब :))

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  7. आस बनी रहे........बहुत सुन्दर।

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  8. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...

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  9. जीवन एक नदी है
    जिसमे भँवर हैं आते
    जो खुद में समाकर
    दूर हमें कर जाते

    bahut khoob sir ......badhai .

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  10. ये सच है जीवन का
    लघु मिलन दीर्घ विहर है
    फिर भी है मन आह्लादित
    जब तक गूँजे तेरे स्वर हैं.

    सुंदर भावपूर्ण कविता.

    आपको गणतंत्र दिवस पर बधाइयाँ और शुभकामनायें.

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  11. अति मधुर रचना..

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