पंथ निहारे रखना
छोड़ दो ताने बाने
भूल के राग पुराने
प्रेम सुधा की सरिता
आ जाओ बरसाने
प्रियतम दूर कहाँ हो
किस वन, प्रांतर में
सौ प्रश्न उमड़ रहे
हैं
उद्वेलित मेरे अंतर
में
जीवन एक नदी है
जिसमे भँवर हैं आते
जो खुद में समाकर
दूर हमें कर जाते
ये सच है जीवन का
लघु मिलन दीर्घ विहर
है
फिर भी है मन
आह्लादित
जब तक गूँजे तेरे स्वर हैं
देखा था जो सपना
वो सपना जीवित है
प्रीत के शीकर पीकर
प्रेम से मन प्लावित
है
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....प्रिय पंथ बुहारे
रखना
हो देर मगर आऊँगा
वादा जो किया था मैंने
वो मैं जरूर
निभाऊंगा.
(निहार रंजन,
सेंट्रल, १-२०-२०१३)
अबकी पढ़कर बस एक ही शब्द निकला - 'वाह'!
ReplyDeleteअति उत्तम, प्यारी रचना है।
सादर
मधुरेश
प्रिय पंथ बुहारे रखना
ReplyDeleteहो देर मगर आऊँगा
वादा जो किया था मैंने
वो मैं जरूर निभाऊंगा.
बेहतरीन पंक्तियाँ
सादर
प्रिय पंथ बुहारे रखना
ReplyDeleteहो देर मगर आऊँगा
वादा जो किया था मैंने
वो मैं जरूर निभाऊंगा.
बहुत ही सुन्दर भावाभियक्ति ,,,,
प्रिय पंथ बुहारे रखना
ReplyDeleteहो देर मगर आऊँगा
वादा जो किया था मैंने
वो मैं जरूर निभाऊंगा....
प्रेम में पगे धब्द ... भावपूर्ण ... इस प्रेम को यूं ही बनाएँ रखें ...
प्रिय पंथ बुहारे रखना
ReplyDeleteहो देर मगर आऊँगा.....bhawpoorn....
प्रिय पंथ बुहारे रखना
ReplyDeleteहो देर मगर आऊँगा
वादा जो किया था मैंने
वो मैं जरूर निभाऊंगा
वो आया या ना आया
मैं आ गई कहने ....
लाजबाब :))
बहुत ही सुन्दर
Deleteआस बनी रहे........बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteजीवन एक नदी है
ReplyDeleteजिसमे भँवर हैं आते
जो खुद में समाकर
दूर हमें कर जाते
bahut khoob sir ......badhai .
वादा पूरा हो ...:))
ReplyDeleteये सच है जीवन का
ReplyDeleteलघु मिलन दीर्घ विहर है
फिर भी है मन आह्लादित
जब तक गूँजे तेरे स्वर हैं.
सुंदर भावपूर्ण कविता.
आपको गणतंत्र दिवस पर बधाइयाँ और शुभकामनायें.
अति मधुर रचना..
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