तुमने मुझे खून दिया
मैंने तुम्हारा खून लिया
तुमने मुझे खून से सींचा
और मैंने चाक़ू मुट्ठी में
भींचा
शब्द नवजात की तरह नंगे हो
गए
बस अफवाह पर दंगे हो गए
परकीया के हाथ पर बोला तोता
तुमने ही चूड़ियाँ बजाई,
तुमने ही खेत जोता
झंडे पर शार्दूल,
ह्रदय में मार्जार
रसूलनबाई का हाल ज़ार-जार
धान के खेतों के बीच की चमकती
दग्धकामा
बिदेसिया के प्रीत रामा! हो
रामा!
लालारुख का अंगीठिया रुखसार
जैसे कोई आयुध, वैसी रतनार
बारिश के झोंकों सी तंज
सहती एक नववधू
जैसे सहरा की बूँद हो एक
शिशु
पर क्या मिला कि मेरे गमले
के पौधे सूख गए
और फूल काँटा बन मुझे बेध
गया
मेरी मनस्कांत
यानि शान्ति! रहने नहीं
देगी शांत
अपनी सीमाओं में रागान्वित
मेरी सीता
कहती है इस दाल और तेल पर
क्या नहीं बीता
एक छद्म-छवि पर योगित मेरा
योगी
कहता है मैं ठहरा आदि-भोगी
उद्दांत उर्मियों के पार्श्व
की विस्फारित सुर्खियाँ देखकर
मेरे “ह्रदय-डाल की सूखी
टहनी से चिड़ियाँ ने कहा―
प्रेतकुल सम्राट! दो हाथी,
तीन घोड़े, पांच बाघ”
मेरी समन्वित चेतना, प्रवीर
मेरा चितवन, अल्प, अपरिसर
मेरे निरिच्छ मन की निर्मूल भ्रांतियां
मेरे लोकित स्वप्न
है तब तक जब तक वो चित्रकार
है
जो कूची छोड़कर, करता
सामूहिक नरसंहार है
और मेरे डाल की चिड़ियाँ
कहती है
रात की ये चाँदनी
ये चाँदनी, ये चाँदनी
(ओंकारनाथ मिश्र, वैली व्यू २२
अक्टूबर २०१६)
शब्द नवजात की तरह नंगे हो गए
ReplyDeleteबस अफवाह पर दंगे हो गए!
नमस्कार निहार भाई, बहुत दिनों बाद ब्लॉग पर आया। अच्छा लगा! अभी पेंडिंग लिस्ट में आपकी इतनी सारी रचनाएँ हैं , शीघ्र समय निकाल कर उनका आनंद लेने का प्रयास करूँगा! :)
बहुत सुन्दर ...क्लिष्ट शब्दो ने दिमाग में दंगे करा दिए
ReplyDeleteशब्द सच में नंगे होते हैं और हम ही उसे जामा पहनाते हैं ... और आज की त्रासदी तो ये है की शब्द दंगों की आंच में ही लिपटा रहता है ... स्थिति को साफ़ साफ़ बिना लाग लपेट के उतार दिया है ... बहुत खूब ...
ReplyDeleteसुन्दर शब्द रचना
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