Wednesday, May 25, 2016

कि बादल आये हैं

नाच उठा है मोर कि बादल आये हैं
यही बात सब ओर कि बादल आये है

सुरमई है हर एक किनारा अम्बर का 
बिजली ढन-ढन शोर कि बादल आये हैं

वो आँसूं भी सूख चुके हैं तप-तपकर  
ढलके थे जो कोर कि बादल आये हैं

बाँध लिया है झूला मेरे प्रियतम ने
चला मैं सारा छोड़ कि बादल आये हैं

पौधे, पंछी, मानव सबकी चाह यही
बरसो पूरे जोर कि बादल आये हैं

(ओंकारनाथ मिश्र, वैली व्यू, २५ मई २०१६)                                                                                                        

9 comments:

  1. इस गीतिका के भाव और शिल्प दोनों प्रशंसनीय हैं, बहुत बढ़िया !

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  2. वाह ! सुंदर शब्द रचना

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  3. जय मां हाटेशवरी...
    अनेक रचनाएं पढ़ी...
    पर आप की रचना पसंद आयी...
    हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 27/05/2016 को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की गयी है...
    इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

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  4. मन आह्लादित करती हुई सुंदर रचना !!

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  5. बहुत सुंदर रचना ।

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  6. बाँध लिया है झूला मेरे प्रियतम ने
    चला मैं सारा छोड़ कि बादल आये हैं ..
    वाह आज तो आपका अंदाज निराला है ... लगता है मौसम ने प्रेम के तार छेड़ दिए हैं ... हर शेर प्रेम रस का अमृत है ... बहुत बधाई ...

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  7. बहुत सुन्दर भाव
    बढ़िया रचना

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  8. bahut achha likhte hain kripya kuch tips dijiye ki blog kofamous kaise karte hain hamara blog hai bhannaat.com

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