बाइबल से निकले हुए भाव थे
शायद-
“गॉड कैननॉट गिव यू मोर दैन
यू कैन टेक”
कर्ण-विवरों में आशा की
ध्वनियाँ
कोठे पर नाचनेवाली की पायल
अक्सर, अच्छी लगती है- बहुत
अच्छी
और साथ ही यह भी-
“व्हाटऐवर हैप्पेंस, हैप्पेंस
फॉर द बेस्ट”
जुमले नहीं है ये
सिद्धहस्तों के सूत्र
हैं-जीवन सूत्र
लेकिन मेरे ही पड़ोस में रहती
है-
श्रीमती(?) महलखा चंदा
बर्तन धोती है, बच्चों के
पेट भरती है
कितने नालायक बच्चे है
जबसे स्कूल छूटा .........
बस आवारागर्दी
चाहे गर्मी हो या सर्दी
दो बरस से जब
इनके पिता दंगे की गाल आये
और महलखा उतर आई चौका-बर्तन
करने
सिद्धहस्तों के सूत्र
हैं-जीवन सूत्र
“व्हाटऐवर हैप्पेंस, हैप्पेंस
फॉर द बेस्ट”
पूछ लूँ ?
(ओंकारनाथ मिश्र, नॉएडा, ९
फ़रवरी २०१६ )
वाह बहुत सुंदर कविता .... वैसे यह सच है व्हाटऐवर हैप्पेंस, हैप्पेंस फॉर द बेस्ट....... परिणाम तुरंत समझ में नहीं आता या कभी कभी इतनी देर ह जाती है कि दोनों के अंतरसंबंध स्थापित नहीं हो पाते ............ नोएडा आ गए क्या ?
ReplyDeleteजी.घूमते घूमते.
Deleteकुछ ऐसे प्रश्न हैं जो जीवन में अबूझ रहते हैं...
ReplyDeleteपहेली का अनसुलझा हिस्सा-सा।
ReplyDeleteऐसा सोचने के लिए तो अच्छा है और जिसके साथ अच्छा हो उनकेलिए भी अच्छा है ... पर जिनकी किस्मत की रेखा ही न हो .... उनके लिए ऐसा बोलना कडवी गोली से कम नहीं है ... कमाल की रचना है ...
ReplyDeleteजुमले नहीं है ये
ReplyDeleteसिद्धहस्तों के सूत्र हैं-जीवन सूत्र
एहसास हो रहा है. कुछ विध्वंस तो कुछ निर्माण चलता रहता है. प्रश्न तो हमेशा रहेगा..
सार्थक व प्रशंसनीय रचना...
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
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