इस इक्कीसवी सदी में इतना हो
चुका है
पर आकुल ज्वाला के साथ आई
इन अग्नि सिक्त फूलों में
ना रंग है
ना महक है
ना दूर-दूर तक कोई चहक है
बस, कसक ही कसक है
और मेरे विक्षिप्त मन से
निक्षिप्त शब्दों में
उद्वेलित सागर की उत्तरंग
लहरों सा उफान है
पर सच है, इन प्रश्नों का
उत्तर बहुत मूल्यवान है
दशकों से याचित यह प्रश्न
मेरे ह्रदय का निरुपाय विकार
है
सो मुझे ‘पतिता’ के संग भाग
जाना भी स्वीकार है
क्योंकि मुझे पूरा विश्वास
है
कि सांस लेती ये बुतें भी
अगर अपनी छाती चीर लें
तो राम ही राम दिखेगा
पर हो नहीं पाता है
वो राम-राम करती रहती है
तभी काला-जार से इनका राम नाम
हो जाता है
और ठक्कन बाबू की पवित्र सीता
की देह
किसी पतिता की देह बन जाती
है
क्यों, किसलिए, कोई नहीं
कहता है मुझसे ?
इक्कीसवी सदी के इस समाज
में!
सो ठक्कन बाबू !
मैं आग लगाऊं, वो भी ठीक
नहीं
मैं दाग लगाऊं, वो भी ठीक
नहीं
चिराग बुझा है, दीया सूखा
है
गया का हरेक कौवा भूखा है
माना, पतिताओं के डिगे कदम
है
पर समय बहुत कम है
आइये, हाथ मिलाइये
आइये, उन काली किताबों को
जलाइये
जिसमे छियासठी का षोडशी से मेल
पवित्र है
जिसमे सिर्फ सीताओं का
दूषित चरित्र है
भाग जाने दीजिये मुझे ‘पतिता’
के संग
और ढोल बजवा दीजिये पूरे
गाँव में
कि मेरी वासना की निर्लज्ज नागिन
पागलों की तरह नाचने चली
गयी है
इक्कीसवी सदी के इस समाज
में!
अब और देर नहीं
इन मरियल चिताओं को जलाने
का सामर्थ्य नहीं
इनमे धुंआ भी नहीं कि दम
घुट जाए
लकड़सेज पर लेटी यह ‘फुलपरासवाली’
हर रोज मुझसे बहुत बकबक
करती है
बहुत बातूनी है
ठक्कन बाबू! इसके होंठ सी दीजिये
(ओंकारनाथ मिश्र, समिट स्ट्रीट,
६ जून २०१४)
गहन भाव लिए उम्दा अभिव्यक्ति
ReplyDeleteजबरदस्त
ReplyDeleteशब्द भी आग लगा जाते हैं कभी-कभी..... आपके कलम में वही ताकत दिख रही है................
कल 08/जून/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
अोर छोर फैले भ्रान्ति मेघों ने आपको गजब अनुभव उकेरने का अवसर प्रदान किया है।
ReplyDeleteशब्दों क प्रवाह काफी है आह लगा देने के लिए ... गज़ब की रचना ... आज का कडुवा सच ...
ReplyDeleteसराहनीय गज़ब कटाक्ष...
ReplyDeleteउम्दा रचना ...
ReplyDeleteइस इक्कीसवीं सदी में आक्रोश की अग्नि तो वैसे ही प्रज्ज्वलित रहती है ' पतिताओं' का हाल देखकर ऊपर से आपकी ये रचना तो घृत समान है . आह....
ReplyDeleteबहुत उम्दा | ये ठक्कन बाबु ???
ReplyDeleteजीवन का अनकहा सच
ReplyDeleteसार्थक,सुंदर भाव