कुछ अधूरे शब्द
कुछ अधूरी ग़ज़लें
कुछ अधूरी कवितायें
यह अधूरा होश
शब्द, स्वप्न, साँसों में उलझा मन
और मन का यह अधूरापन
जो मेरी ताकत है
मेरी आशा है
मेरी प्रेरणा है
मेरी साधना है
आज लौट आया हूँ
उसी नदी के तट पर
पर नदी आगे बढ़ चुकी है
तुम्हारी तरह
और मैं रह गया हूँ
तट की तरह, वहीँ पर
जबकि मैं रवहीन हूँ
किसी और लोक में लीन हूँ
यह तट चाहता है सुनना
फिर तुम्हारी पदचाप को
फिर तुम्हारे गीत को, आलाप को
चाहता हूँ दुबारा चल-चल कर
भरता रहूँ तुम्हारे पद-चिन्हों की रिक्तता को
बताता रहूँ तट को बार-बार
उसकी असमर्थता के बारे में
जो नहीं देख पाता है
तुम्हारा अस्तित्व, मेरे अस्तित्व में
(ओंकारनाथ मिश्र, समिट स्ट्रीट, १६ फ़रवरी २०१४)
गजब अनुभूति है। वाकई अधूरा अहसास ही जीवन का बचा है। बहुत गहन गम्भीर और अपनी सी लगी यह शब्दावली।
ReplyDeleteमानव मन की सुंदर रेखाचित्र
ReplyDeleteप्रभावी करता अंदाज़
ReplyDeletebehad bhawpurn... umda rachna...
ReplyDeleteबताता रहूँ तट को बार-बार
ReplyDeleteउसकी असमर्थता के बारे में
जो नहीं देख पाता है
तुम्हारा अस्तित्व, मेरे अस्तित्व में
...लाज़वाब...दिल को छूती बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति...
नदी के साथ तट नहीं जा सकता उसकी नियति में है वहीं रुक जाना न की सागर में विलीन हो जाना .... कर्तव्य के रास्ते प्रेम से जुदा होते हैं ...
ReplyDeleteगहरी भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...
सुंदर भावपूर्ण रचना .....
ReplyDeleteएक शांत सी विकलता की कथा..अति सुन्दर..
ReplyDeleteये अधूरा पन ही तो है जो हमें पूर्णत्व के लिये प्रेरित करता है। जहां जहां नदी है वहां तट भी है, चाहे वह हमारा ना हो।
ReplyDeleteअकेले में जब ह्रदय सब कुछ समर्पण कर दे तो....
ReplyDeleteतब ऐसा ही कुछ उमड़ता है
पुन: रसास्वादन ..
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