वक़्त ने सोख ली रोशनाई , सो खामोश हैं हम
अब ना रही वो बीनाई , सो खामोश हैं हम
ग़म-आशना हुए इस कदर की निढाल हो हो गए
दो बरस रोते रहे इस कदर कि बदहाल हो गए
ना दिल में सोज़, ना शब्द-सरिता में उफान
उठाना चाहा कई बार पर उठा नहीं तूफ़ान
ना फूल, ना रंग, ना सुवास, ज़िन्दगी गुज़रती है नाशाद
ऊपर सब ठीक है पर अंदर है बरबाद
यही वक़्त है रचनेवाले जान लो तुम
बाण आता न हरदम काम, जान लो तुम
(ओंकारनाथ मिश्र,लखनऊ)
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में मंगलवार, 28 अक्टूबर , 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteसुंदर
ReplyDeleteसुंदर
ReplyDeleteदर्द जब हद से गुजर जाता है, दवा बन जाता है, वरना बनकर कुछ अल्फ़ाज़, पन्नों पर उतर जाता है
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ।
ReplyDeleteसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार 31 अक्टूबर २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
देर से सूचित करने के लिए क्षमा चाहते हैं।
बस अपने ग़म को अपनी रोशनाई बना लें , मैं तो यही कहूँगी कि यही मकसद मिल जाएगा । अच्छा अभिव्यक्त किया है आपने ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteवाह! बहुत सुंदर।
ReplyDeleteवाह! बहुत सुंदर।
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