Sunday, December 1, 2013

हड़प्पा

काल-चक्र  के  अवर्त  में,  
घिर जो हुआ  था  वीरान    
किसे ज्ञात था, रहेगा संवृत,
भू-कुक्षि   में वो  निशान
जिसमे निभृत, सभ्यता की
होगी  एक   ऐसी  कहानी
तार-तार  जिसके सुलझाने,
उलझेंगे  दुनिया के  ज्ञानी  
और करते  जिनका संधान
कभी नहीं हम  थक पायेंगे
परतें उसकी खोल-खोल के
अथक स्तव-रव  ही गायेंगे

लुप्त हुआ कूजन-कोलाहल,
जाने किसने थी क्या ठानी
और उठा था वहां से जीवन,
सच कहते दुनिया  ये फानी
निवृत्त हुआ सर्वस्व मृदा में,
रही  अस्थियाँ  अवशेष बन
विध्वंस के साक्षी निलयों में,
पसरा  था  खाली  सूनापन
किसे पता ये, प्रलय-याम था
या  धधकी  कोई  चिनगारी
स्रस्त  हुए  उत्कर्ष-श्रृंग  से,
सकल सभ्यता  ही थी हारी

समय-पराजित  हुई सभ्यता,
पर  ना  घटी उसकी उंचाई 
अनावृत वो  भूत हुआ  जब,
सबकी आँखें  थी  चौंधियाई
कारीगिरी से भरा शिल्प था,
जाने  कैसे  थे   दस्तकार  
बीते  हजारों  वर्ष   लेकिन,
हिल ना सकी उनकी दीवार
क्या धातुकला की निपुणता,
कितना उन्नत उनका विज्ञान
परिगूढ़ लिपि कैसी  उनकी,
नहीं  सका  कोई  पहचान   
    
और  नग्न नृत्यांगना  की,
रहस्य  भरी  है  निशान्ति
कांस्य सांचे  में  ढल  भी,
जिसकी ना मलिन हुई कांति 
प्रवर   नगरवधू  वो  कोई
या अदा-व्याप्त मधु की रानी
कवरी-बाला   संतप्त   कोई
या  रूपवती  वो अभिमानी
जाने  ऐसी  कितनी पृच्छा,
जिसके उत्तर से सब वंचित
विस्तृत भूभागों  में कब से,
जाने अब भी है क्या संचित

किसे ज्ञात कब दुनिया पाए,
इसमें गर्भित बातों का ज्ञान
पर   इसमें   संशय  नही,
धरती की वो सभ्यता महान
अवलोक जिनका ध्वस्त नगर,
जब हो जाता इतना विस्मय
सोचें  कैसा  जीवन उनका,
बीता   होगा  कर्म-तन्मय
कहती हमसे, हो कर्म गुणी,
तो  होती  ही, उसकी जय
चाहे  गर्त   में   दबाकर, 
कितना भी क्षय करे समय  

(निहार रंजन, सेंट्रल, ३० नवम्बर २०१३)

अवर्त = तूफ़ान, मुश्किल समय 
संवृत = संरक्षित, ढँका हुआ 
भू-कुक्षि = पृथ्वी की कोख 
निभृत = छुपी हुई 
स्तव-रव- प्रशंसा के  शब्द
निलयों = घरों 
प्रलय-याम = प्रलय का पहर 
स्रस्त = गिरा हुआ 
कवरी-बाला- बंद चोटी वाली लड़की 
पृच्छा = जिज्ञासा 

30 comments:

  1. सही कहा समय के गोद में बहुत ही अचंभित कर देने वाले अवशेष अभी भी अनसुलझा है.... हड़प्पा और मेसोपोटामिया के सभ्यता को समझने में अभी भी विद्वानों को वक्त लगेगा .......

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  2. किसे ज्ञात कब दुनिया पाए,
    इसमें गर्भित बातों का ज्ञान
    पर इसमें संशय नही,
    धरती की वो सभ्यता महान
    .......
    जैसे यहाँ मिला मुझे गर्भित सार
    शब्दों का अद्भुत संसार
    भावों का जीर्णोद्धार

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  3. निशब्द हूँ आपकी सृजनात्मकता पर …… !!प्रशंसा के लिए शब्द ही नहीं हैं इस उत्कृष्ट रचना के लिए!संग्रहणीय कविता हेतु साधुवाद स्वीकारें !!

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  4. एक जीवन-समय के अवसान के बाद अर्थात् एक तरह से उसके जीवाश्‍म बन जाने के बाद पुन: जीवनोत्‍पत्ति होने पर उसमें विचरित मनुष्‍य प्राणी अगर पुराजीवन के अवशेषों की खोज करते हैं तो और उसे एक रचनात्‍मक मर्म समझते हैं तो इससे व्‍यतीत और वर्तमान जीवन अदृश्‍य रूप से धन्‍य होता है..........कुछ ऐसा ही भान हुआ इतिहास के घटनाक्रम पर मोहित कवि के इस कवितांक को पढ़कर।

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  5. स्तबध हूँ और मूक भी .......... इतिहास ने काव्य में ढलकर कितना सुन्दर रूप धरा है । ये आपकी ओजस्वी लेखनी का कमाल है । सत्य कहूँ इसे अतिश्योक्ति न समझें मुझे तो ऐसा लगा जैसे मैं "जय शंकर प्रसाद' सरीखे कवि का कोई महा काव्य पढ़ रहा हूँ ।

    नमन है आपकी निरंतर प्रखर होती काव्य प्रतिभा को ।

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  6. हक्का बक्का रह जाती हूँ आपकी रचना को पढ़ कर
    हार्दिक शुभकामनायें

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  7. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर लिखी यह कविता ,सभ्यता का वो दस्तावेज जो धरती के गर्भ में छुपे हुए रहस्य को जानने के लिए प्रोत्साहित करता है !
    नई पोस्ट वो दूल्हा....
    नई पोस्ट हँस-हाइगा

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  8. बहुत ही उत्कृष्ट , सुन्दर सृजन .. हड़प्पा के इतिहास को कविता में जीवंत कर दिया बहुत से पहलुओं को सृजनत्माकता के साथ छुआ है .. बधाई ..

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  9. किसे ज्ञात कब दुनिया पाए,
    इसमें गर्भित बातों का ज्ञान
    पर इसमें संशय नही,
    धरती की वो सभ्यता महान..

    सभ्यताएं आती हैं जाती हैं ... स्थिर तो कुछ भी नही रहता समय और काल के सिवा ... पर कवि के भाव उसे जीवित रखते हैं सदियों तक ... जैसे आपने ...

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  10. सचमुच भव्य और समृद्धिभरा हमारा अतीत -जयशंकर प्रसाद के शिल्प की याद आयी

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  11. बेहद सुंदर रचना है यह ! अनूठी ...
    बधाई आपको !

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  12. हड़प्पा की सभ्यता पर बेहद सारगर्भित तरीके से जो आपने तस्वीर उकेरी है, वो हर तरह से बेमिसाल है....
    मैंने कई बार महसूस किया है कि आपकी कलम में एक सटीक ज्वार है... वो जब तन-मन पे चढ़ता है तो अपने मुकाम को हासिल कर ही दम लेता है....जैसे आपने लिखा था....लैलोनिहाड़ चल तिमिर छाड़.....

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  13. कर्म-तन्मयता स्वयं प्रमाण दे रही है इस कालातीत सृजन में.. अति सुन्दर काव्य-कृति..शुभकामनाएं..

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  14. हडप्पा संस्कृति पर आपकी यह रचना भी उसे अक्षय बनाती है।

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  15. पहली बार शायद इस ब्लॉग पर आना हुआ और यहाँ पढ़ी पहली ही रचना ने बेहद प्रभावित किया है।
    अद्भुत ।

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  16. तार-तार जिसके सुलझाने,
    उलझेंगे दुनिया के ज्ञानी
    और करते जिनका संधान
    कभी नहीं हम थक पायेंगे
    परतें उसकी खोल-खोल के
    अथक स्तव-रव ही गायेंगे ....
    अपनी ही सभ्यता को यूं काव्य में ढालकर गजब के भाव संजोय है आपने सचमुच
    अदबुद्ध था वो समय और उस समय के लोग हम कितनी भी कोशिश क्यूँ ना करलें उसके तार-तार सुलझाने की, मगर शायद अपनी उस महान सभ्यता के उस रहस्य को हम कभी नहीं समझ पायेंगे....

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  17. उत्कृष्ट प्रस्तुति.सुन्दर रचना

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  18. अच्छा कहा आपने ! इसीलिए तो कहते हैं शायद कि सदियों रहा है ........कुछ बात है कि हस्ती .....

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  19. धरती के गर्भ में न जाने ऐसे कितने इतिहास दबे पड़े होंगे !
    सुन्दर वर्णन किया है !

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  20. आप ने इतिहास को बहुत उम्दा रूप दिया है...बहुत बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@ग़ज़ल-जा रहा है जिधर बेखबर आदमी

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  21. बहुत उत्कृष्ट रचना...

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  22. wah bhai aitihasik tathyon pr itani gahari kalpana karke saras bana dena ye aascharyjanak laga

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  23. अद्भुत रचना...

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  24. समय के गर्त में दबे रहस्य बनकर सभ्यतायें इंसान को हमेशा ही आकर्षित करती रही हैं ....बहुत सुंदर रचना है .अनूठा विषय .
    स्कूल के दिनों में उसकी फ़ोटो ही देखि थी फिर भी हड़प्पा की नारी प्रतिमा आज भी ज़हन में ताज़ा है ...आपने उसे जीवंत कर दिया

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