वक़्त ने सोख ली रोशनाई , सो खामोश हैं हम
अब ना रही वो बीनाई , सो खामोश हैं हम
ग़म-आशना हुए इस कदर की निढाल हो हो गए
दो बरस रोते रहे इस कदर कि बदहाल हो गए
ना दिल में सोज़, ना शब्द-सरिता में उफान
उठाना चाहा कई बार पर उठा नहीं तूफ़ान
ना फूल, ना रंग, ना सुवास, ज़िन्दगी गुज़रती है नाशाद
ऊपर सब ठीक है पर अंदर है बरबाद
यही वक़्त है रचनेवाले जान लो तुम
बाण आता न हरदम काम, जान लो तुम
(ओंकारनाथ मिश्र,लखनऊ)
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