लुटता हुआ शहर, सिमटा हुआ मकाँ
लोग ये पूछे- "कहाँ है निगहबान"
वक़्त की कालिख में घुला ज़िन्दगी का रंग
ये कौन सा कातिल है कि सब लोग-बाग़ दंग
सूनी पड़ी है बस्तियां, आबाद शमशान
बेख़ौफ़ आवारा है ये मौत का सामान
चारबाग़, तेलीबाग ,ऐशबाग पस्त
छोड़ इस शहर को चलें कूच करें दश्त
हर रुख हुआ है ज़ब्त, क्यों मौत का निशाँ
लोग ये पूछे- "कहाँ है निगहबान"
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ओंकारनाथ मिश्र
वृन्दावन, १८ अप्रैल २०२१
वाकई , सब यही पूछ रहे कि कहाँ हो ईश्वर ? भावों को बखूबी संजोया है .
ReplyDeleteसही है, पर पूछने वाले अपने भीतर ही नहीं झाँकते
ReplyDeleteबिल्कुल सही प्रश्न,सारगर्भित प्रतिक्रियाएं ।
ReplyDeleteबहुत उम्दा!!!
ReplyDeleteआपकी लिखी कोई रचना सोमवार 19 अप्रैल 2021 को साझा की गई है ,
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
धन्यवाद!
Deleteनिगहबान की निगाहें तलाश रहीं
ReplyDeleteसाँसें ज़िंदगी की राहें तलाश रहीं।
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समसामयिकी बेहतरीन गज़ल।
सादर।
हर रुख हुआ है ज़ब्त, क्यों मौत का निशाँ
ReplyDeleteलोग ये पूछे- "कहाँ है निगहबान" ...बहुत सही !
हृदयस्पर्शी सृजन।
ReplyDeleteसूनी पड़ी है बस्तियां, आबाद शमशान
ReplyDeleteबेख़ौफ़ आवारा है ये मौत का सामान
बहुत खूब... समसामयिक ...
लाजवाब सृजन।
जी हां। अब कहीं कोई निगाहबान नज़र नहीं आता।
ReplyDeleteसमसामयिक विषय पर ग़ज़ल बहुत सुंदर।
ReplyDeleteउम्दा।
ReplyDeleteबहुत खूब ...
ReplyDeleteनिगहबान ... खुद इंसान से ज्यादा खुद का निगहबान कौन हो सकता है ... ये तंत्र, सोच, प्राकृति ... कौन है निगहबान ... आज के समय का सटीक आंकलन है ...
हृदय विदारक पंक्तियाँ...
ReplyDeleteऐसा भी मंज़र देखने को मिला है हमें ... सोचा न था । मर्मस्पर्शी सृजन
ReplyDeleteसूनी पड़ी है बस्तियां, आबाद शमशान
ReplyDeleteबेख़ौफ़ आवारा है ये मौत का सामान
चारबाग़, तेलीबाग ,ऐशबाग पस्त
छोड़ इस शहर को चलें कूच करें दश्त
kitni sunder line likhi hai apne, thanks
View: Mahadev Photo
bdi hi achhi or sunder post likhi hai apne,
ReplyDeleteZee Talwara
Zee Talwara
Zee Talwara
Zee Talwara
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