शीत शैशव में तरंगित, पुष्प, तरुणाई की ओर
शरद का यह चंद्र कीर्णित जोश-ओ-जुन्हाई की ओर
नभ में रौरव-नाद, द्युतिमा, हर दिशा आठों पहर
बादलों का सतत स्यंदन, वात पुरवाई की ओर
खेत सारे डूबे - डूबे, है किसानी शाप सी
कुछ तो सोचेंगे निगेहबाँ, इनके भरपाई की ओर
उर्मियों को बाँध, उन्मन, तप्त सी एक शशिमुखी
चल पड़ी है आज फिर से 'तुमुल-तन्हाई' की ओर
रह सकेंगे कब तलक हम इस नगर के पाश में
बैठ रेलिया, चल पड़ेंगे, गोरी हरजाई की ओर
*************************************
ओंकारनाथ मिश्र, लखनऊ
अक्टूबर १०, २०२२
सुंदर सृजन
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteस्वागत है अति सुन्दर अभिव्यक्ति का।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत सृजन
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर सृजन
ReplyDeleteउर्मियों को बाँध, उन्मन, तप्त सी एक शशिमुखी
ReplyDeleteचल पड़ी है आज फिर से 'तुमुल-तन्हाई' की ओर ...!!!!!!!!!!!!! atyadhik hridaysparshi