Sunday, January 10, 2021

नाग-यज्ञ

वो बिल्ली  दूध का स्वाद  जानती है   

एक काला साँप  उसके पास है  

(साँप में लोच स्वाभाविक है )

जांघ पर लिपटा मृत सांप 

नहीं जानता है कोई आदिम स्वाद 

अथवा गली के मोड़ पर क्रीड़ारत दो श्वान 

नहीं जानते हैं कुछ भी 


काला सांप- विवर से ज़हर चख कर आ चुका है 

उसे अब मौत का कोई ख़ौफ़  नहीं है 

विवर है, जहर है 

लेकिन मौत नहीं है.


बुझे  हुए  लैंप पोस्ट के नीचे 

एक आवरण में आवृत 

बिल्ली म्याँउ नहीं करती 

साँप जहर मांगता है 

लैंप पोस्ट बुझा है 


समय ईमानदार है 

लैंप पोस्ट बुझा है 

राजा जनमेजय

नए  नाग-यज्ञ की तैयारी कर रहे हैं. 


(ओंकारनाथ मिश्र, वृंदावन , १० जनवरी २०२१)


3 comments:

  1. " नाग यज्ञ " अचानक कितने ही कपाट खुल गए । बहुत कुछ दिखने लगा ।

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  2. नाग यज्ञ ... बिल्ली के माध्यान से कितना कुछ कहने लिख देने का आभास ...
    बहुत गहरी रचना ...

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  3. गहन भाव समेटे सुन्दर सृजन।

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