किंग्स स्ट्रीट से हर
रोज़
गुजरता हूँ घर लौटते
उसे बेतहाशा पार करने
की जिद ठाने
मगर ये रेड लाइट
रोक लेती है मुझे
नीली-पीली रौशनी से
नहलाने के लिए
‘भद्रपुरुषों’ के
क्लब में मुझे बुलाने के लिए
भद्र समाज में भद्रता
का पाठ पढ़ाने के लिए
इसी दुनिया में
‘जन्नत’ की सैर कराने के लिए
ये कोई सोनागाछी नहीं
ये कोई जी बी रोड
नहीं
ये चोर-गलियाँ नहीं
इसमें छुपकर जाने की
ज़रुरत नहीं
सामजिक सरोकारों से
जुड़े हैं ये
जनता की मुहर है इसे
और नीली रौशनी को बड़ी
जिम्मेदारी है
आपको ‘भद्र’ बनाने की
इसलिए स्वेच्छा से
खड़ी
मुस्कुराती ये
तन्वंगियाँ
सिगरेट-हुक्कों के
मशरूमी धुएं के बीच
सागर-ओ-सहबा के दौर के
साथ
बिलकुल पाषाणी अंदाज़
में
आपसे एक होना चाहती
है
क्योंकि समाज ने
जिम्मेदारी है इसे
आपको ‘भद्र’ बनाने की
जितनी जोर से आपके
सिक्के झनकते है
उतनी ही जोर से अदाओं की
बारिश होती है
मर्जी से तो क्या!
आखिर उन चेहरों की
तावानियाँ भी
अन्दर दबाये हैं
वही परेशानियां, वही
मजबूरियां
जो मजबूरियाँ सोनागाछी
में पसरी है
जी बी रोड में दफ़न है
और हमारी जेबों के
सिक्के
आमादा हैं उन
मजबूरियों का अंत करने
नीली रौशनी के तले
याद दिलाता है मुझे
वो बेबीलोनी सभ्यता के
लोग हों
या हम, कुछ बदला नहीं
समय बदला, चेहरे बदले
लेकिन चाल नहीं बदली
वही बाज़ार है, वही
खरीदार है
बस फर्क है कोई
स्वेच्छा से नाच रही है
किसी को जबरन नचाया
जा रहा है
कोई नीली रौशनी में
डूब जाना चाहता है
किसी को नीली रौशनी
में डुबाया जा रहा है
(निहार रंजन, सेंट्रल, २८ मई २०१३)
बेबीलोनी सभ्यता ??
ReplyDeleteबेबीलोन की सभ्यता की तरफ इशारा था.
Deleteखुली संस्कृति का अति उदार चेहरा या अति आधुनिक चेहरा.
ReplyDeleteविसंगतियों के दोनों आयामों का सटीक विश्लेषण..........
ReplyDeleteसमय बदला, चेहरे बदले ...
ReplyDeleteसंस्कृति भी बदली है कुछ कुछ ... और वीभत्स हो गई है ...
याद दिलाता है मुझे
ReplyDeleteवो बेबीलोनी सभ्यता के लोग हों
या हम, कुछ बदला नहीं
समय बदला, चेहरे बदले
लेकिन चाल नहीं बदली
बिल्कुल सही ...
सच में ...कुछ नहीं बदला है ...वही बाज़ार है, वही खरीदार है ... जिसमे नीली रौशनी के तले कोई नीलाम होने को आमादा है तो कोई नीलाम करने को आमादा है ...
ReplyDeleteउम्दा ...
badala to hai kyonki star girata hii ja raha hai ....
ReplyDeleteयाद दिलाता है मुझे
वो बेबीलोनी सभ्यता के लोग हों
या हम, कुछ बदला नहीं
समय बदला, चेहरे बदले
लेकिन चाल नहीं बदली
bilkul sach likha hai ...!!
समय बदला चेहरे बदले.. लेकिन चाल नहीं बदली.. सोचने पर मजबूर करती रचना.. बहुत अच्छी प्रस्तुति !!
ReplyDeleteखाका अच्छा खींचा है।
ReplyDeleteबहुत खूब! ईमानदारी से खीचा गया शब्द चित्र और इसे बहुत खूबसूरती से ऐतिहासिक तथ्यों से जोड़ा है।
ReplyDeleteaapki abhivykti mein..soch ki paripakvta aur sajeevta jhalak rahi hai...too gud!
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता और इस कविता में केवल इस पुराने पेशे के लिए गालियाँ नहीं हैं दर्द बिखरा हुआ है समस्या वही है चश्मा नया है चीजें साफ दिख रही हैं।
ReplyDeleteवही बाज़ार है, वही खरीदार है
ReplyDeleteबस फर्क है कोई स्वेच्छा से नाच रही है
किसी को जबरन नचाया जा रहा है
कोई नीली रौशनी में डूब जाना चाहता है
किसी को नीली रौशनी में डुबाया जा रहा है
....बहुत मर्मस्पर्शी शब्द चित्र...अंतस को झकझोरती उत्कृष्ट अभिव्यक्ति...
bahut hi satik baat kahi hai aapne, chahe neeli roshni ke tale ho ya kahin aur majburi hai jo nachati hai nach.
ReplyDeleteshubhkamnayen
आपने लिखा....हमने पढ़ा
ReplyDeleteऔर लोग भी पढ़ें;
इसलिए कल 03/06/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
धन्यवाद!
हलचल में स्थान देने के लिए शुक्रिया.
Deleteयह दुनिया नीली पीली
ReplyDeleteवही बाज़ार है, वही खरीदार है
ReplyDeleteबस फर्क है कोई स्वेच्छा से नाच रही है
किसी को जबरन नचाया जा रहा है
कोई नीली रौशनी में डूब जाना चाहता है
किसी को नीली रौशनी में डुबाया जा रहा है---सुन्दर, मार्मिक प्रस्तुति!
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शानदार अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबस फर्क है कोई स्वेच्छा से नाच रही है
ReplyDeleteकिसी को जबरन नचाया जा रहा है
कोई नीली रौशनी में डूब जाना चाहता है
किसी को नीली रौशनी में डुबाया जा रहा है bahut khoob ....
बेहतरीन.........लाजवाब......निहार भाई बहुत ही बढ़िया लिखा है......हैट्स ऑफ ।
ReplyDeleteया हम, कुछ बदला नहीं
ReplyDeleteसमय बदला, चेहरे बदले
लेकिन चाल नहीं बदली
.....बिल्कुल सही शानदार अभिव्यक्ति।