Friday, March 1, 2013

गर्भवती




गर्भवती 



सुबह अपनी प्रयोगशाला पहुँचा 
तो अपने नियत स्थान से "शिकागोवाली" गायब थी 
बस्ता रखा और  अपने घुलते रसायनों  को परखने लगा  
 अचानक "शिकागोवाली" चहकती लैब में दाखिल हुई
स्पैनिश में चहक चहक बतियाती रही 
और मैं अपने काम में निमग्न हो गया 

अचानक किसी ने पीठ  छुआ 
देखा "शिकागोवाली" गले में मास्क लटकाए खड़ी है 
मुस्कान बिखेरते पूछती है-बोलो मैं खुश क्यों हूँ ?
मैंने मज़ाक में कहा, तुम तो "मामासिता" हो 
किसी ने तुम्हारी खूबसूरती पर कविता लिखी होगी 
वो हंसती रही और बस हंसती रही
अचानक से मैंने पूछा
 सालों से रसायनों का ज़हर पीती  हो 
कभी पहले नहीं देखा मास्क लगाये हुए? 
जवाब आता है -अब मेरे अन्दर दो जानें हैं !

 "शिकागोवाली" सुबह से चहक चहक अपनी माँ से 
इस नए जान के बारे में कह रही थी
और उसकी माँ फूले नहीं समा रही थी
पहली  बार जो वो नानी बनने  वाली थी 
बोल रही थी मैं तो नानी बनने का सपना बिलकुल भूल चुकी थी 

पीएचडी की दीर्घता  से व्याकुल होकर 
और मातृत्व इच्छा से आकुल होकर 
"शिकागोवाली" ने कुंवारी माँ बनने का निश्चय किया था 
दिन भर लोग बधाइयां देने आते रहे 
किसी के मन ये सवाल नहीं था 
की बच्चा जायज है नाजायज 
किसी के मन में तिरस्कार नहीं था 
किसी ने नहीं कहा कि "शिकागोवाली" कुलटा है 
सब जानते थे "शिकागोवाली" बहुत नेक, मददगार इंसान है 
सब जानते थे "शिकागोवाली" कुंवारी माँ बन के भी 
वैसी ही नेक और मददगार रहेगी 

और एक तरफ अतीत को वो दृश्य भी याद करता हूँ 
जहां जानबूझकर, अज्ञानतावश या बलात 
जब कोई लड़की कुंवारी गर्भवती हो  जाती है 
तो  उसके नरक जाने की रसीद कट जाती  है 
उसके शील, चरित्र और परिवार की  धज्जियां उड़ती हैं 
बिना ये जाने कि उस कुंवारी लड़की के कोख में बच्चा आया कैसे 
फिर वो दोनों माँ  और बच्चा, आजन्म दाग लिए फिरते है 

बात सही और गलत की नहीं है 
बात है एक ही परिस्थिति को दो नजरिये से देखने की 
दो समाजों के अलग नजरिये की  
 एक तरफ स्वीकार्यता  है और दूसरी तरफ मौत का फरमान 
एक तरफ सब सामन्य है वहीँ दूसरी तरफ भूचाल 

कोठे के अन्दर  देह परोसती हर वेश्या  की कहानी एक नहीं होती 
उसमे भी इंसान होते हैं मेरी और आपकी तरह 
और ये भी सच नहीं की अपना पेट  काटकर जीनेवाला कंजूस  होता है
 शायद  वो अपने बीमार माँ की दवा के पैसे जोड़ता है 
 कुंवारी माँ कामान्धी  कुलटा नहीं होती
परिस्थिति जाने  बिना हम कितनी सहजता से लोगों को  वर्गीकृत करते हैं 

पर ये जानेगा कौन और क्यों ?
जहाँ नयी नवेली ब्याही मुनिया 
मातृत्व की भनक पाते ही 
बंद हो जाती है संकुचित होकर लाज के मारे 
अपनों से भी छुपी रहती है
क्योंकि वो गर्भवती हो गयी है.

(निहार रंजन , सेंट्रल, २८ फ़रवरी २०१३ )

*मामासिता (आकर्षक लड़की) 

23 comments:

  1. बढ़िया निहार साहब ...मामासीता नजरिया ...

    ReplyDelete
  2. मानसिकता में अंतर ही परिभाषाओं को गढ़ता है और थोपता भी है. जिसे आप अपना अतीत कह रहे हैं वह यहाँ आज भी बेशर्म वर्तमान बना हुआ है . यहाँ की मानसिकता कभी नहीं बदलने वाली है.

    ReplyDelete
  3. निहारजी बहुत प्यारी लगी आपकी कविता ..मन किया कई बार पढूं..और पढ़ी भी ...और वह 'मामासिता' दिल में उतर गयी...हाँ यह अभिशाप भी हो सकता था ...लेकिन यह तो सिर्फ एक मानसिकता है ...कहां तक लड़ेंगे उससे ....!!!

    ReplyDelete
  4. सच बात है .....किसी भी चीज़ को देखने का नज़रिया कितना मैने रखता है .....!!

    ReplyDelete
  5. ये सब भारत में ही है बाहर कोई कुछ नही पूछता

    ReplyDelete
  6. ये मानसिकता केवल भारत में है

    ReplyDelete
  7. काफी कुछ बोलती हुई सार्थक रचना ...

    ReplyDelete
  8. इस रचना के लिए नमन निहार भाई! बहुत ही सटीक, सार्थक सन्देश छिपा है इसमें (कम से कम हमारे भारतीय समाज को सीखने के लिए). इस सशक्त लेखन के लिए कोटि अभिनन्दन।

    ReplyDelete

  9. दिनांक03/03/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. पोस्ट शामिल करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया यशवंत भाई.

      Delete
  10. निहार भाई .......निशब्द करते शब्द.........हैट्स ऑफ इसके लिए.....

    ये शब्द तो बहुत ही अच्छे है - बात सही और गलत की नहीं है
    बात है एक ही परिस्थिति को दो नजरिये से देखने की
    दो समाजों के अलग नजरिये की

    ReplyDelete
  11. Nihar ji

    ek atyant hi marmik aur hridaysparshi kavita----pataa nahi hamarey desh se ye kuritiyan kab hatengi --do visit my link given below if and when you have the time


    http://rajni-rajnigaqndha.blogspot.in/2012/12/naari-no-woman-no-cry.html


    thanks for this lovely poem comparing two societies

    ReplyDelete
  12. शुभ प्रभात
    पहली बार यहाँ आई हूँ
    शायद गलती सो सही जगह पहुँची
    शुक्रिया यशवन्त भाई को
    यहाँ का पता जो दिया
    सादर

    http://nayi-purani-halchal.blogspot.com/
    http://yashoda4.blogspot.in/
    http://4yashoda.blogspot.in/
    http://yashoda04.blogspot.in/

    ReplyDelete
    Replies
    1. मेरे ब्लॉग पर आने के लिए बहुत आभार एवं स्वागत है आपका यशोदा जी.

      Delete
  13. देखिये न विज्ञान भी यहाँ कितना सहज सरल और विवादहीन है,हाँ विभिन्न संस्कृतियाँ इस सामान्य जैवीय घटना को को अलग अलग तरीके से देखेगी अपने परिप्रेक्ष्य में -आज जापान जो कि पूर्व की संस्कृति का देश है ऐसी स्थितियों को स्वीकार कर चुका है क्योंकि वह पूर्णतया औद्योगिक शहर है लड़की खुद और जन्मने वाले बच्चे का भरण पोषण करने में समर्थ है -जैवीयता की माँग भी यही है कि भरोसे के रिश्ते बनाये जाय ताकि सन्तति सुरक्षित रहे ..भारत में आज भी नारी पूर्णतया अपने पैरों पर नहीं है ....बढियां विचारोत्तेजक कलात्मक प्रस्तुति !

    ReplyDelete
  14. मामासिता के माध्यम से विभिन्न समाजों के अंतर को ... मान्यताओं के फर्क को बाखूबी उजागर किया है ...

    ReplyDelete
  15. Story of two different worlds. We still need the approval of society for everything. We give more importance to our face value than our own happiness. Though, I don't advocate kids before marriage but I also don't advocate a 18 years girl getting married and having babies.

    ReplyDelete
  16. duniya bahut vilakshan hai, ham keval aankhe kholkar ise dekhte rahte hain, achchi post

    ReplyDelete
  17. sunder abhivyakti......

    alag-alag paristhiti mein ek hi ghatnachakr par bhinn-bhinn pratikriya hoti hai.

    shubhkamnayen

    ReplyDelete
  18. ज्ञान प्रद -अद्धभुत अभिव्यक्ति !!

    ReplyDelete
  19. बहुत सुंदर .बेह्तरीन अभिव्यक्ति !शुभकामनायें.

    ReplyDelete
  20. सब लोगों की सोच पर निर्भर करता है!

    ReplyDelete