अपने ही ह्रदय की
अनिश्चित सीमाओं में
और अनिश्चितताओं के बीच
बंधी है अब भी वही तस्वीर
वही गीत (‘होरी’ गीत)
वही संगीत, कल्पना और उसका
रोमांच
और अपनी जमीन का वह विशाल
चुम्बक
मेरे खेत, धान की बालियाँ और
मेरी माँ
छोटा सा दिन और छोटा सा
जीवन
अपनी अँजुरी में क्या-क्या लूँ
अपनी बातों में क्या-क्या
कहूं
सुबह होती है, शाम होता है
जीवन का बस इतना काम होता
है
(ओंकारनाथ मिश्र, बनगाँव, २७ नवम्बर
२०१५)