मानसूनी खेतों की हरीतिमा देखकर
जब मेरा मन पुलकित होकर झूम उठता है
तो मैं सोचता हूँ―कि हमारे किसानों का मन कितना झूमता होगा
वो किसान; जिनके लिए इसी हरियाली में सारी
खुशहाली है
जिनके लिए इसी हरियाली में सारा स्वप्न है
जिनके लिए इसी हरियाली में बेटी की शादी है
जिनके लिए इसी हरियाली में बेटे की चिंता है
जिनके लिए इसी हरियाली में जोरू के मुस्कान का जरिया है
जिनके लिए इसी हरियाली में भूत को विस्मृत कर
भविष्य का रास्ता है
और इतनी कठिन मिहनत के बाद दो पल सुस्ताने की
मोहलत है
उनके कर-नमन के लिए हमारे लिए दो पल है?
जो चटोरे; साँवरिया चिकन, चलुपा, पैड थाई और
बिरयानी के दीवाने हैं
वो शायद ही सोचते हैं कितना पसीना बहाते हैं
मिटटी के दीवाने
तो मिलता है हमें अनाज और उदर को शान्ति
मुझे ऐसे दीवानों से―
जो मिट्टी के लिए जीते हैं, मिट्टी में जीते है
और अपनी मिट्टी के लिए ही मरते हैं;
बहुत प्रेम है
प्रेम है―बहुत-बहुत
(ओंकारनाथ मिश्र, कानपुर, ४ जुलाई २०१५)