(१) प्राक्कथन
मन्द-मन्द प्रवाह अनिल का
रूप गगन का — मनमोही रतनार
सौरभमयी पथों पर चहुँदिश
बिखरा हुआ था हरसिंगार
निधि बोली — दैट इज सो क्यूट यार !
(२) प्रस्तावना
हृदय-रिक्त आ गए शहर में
भरे कुलांचे डगर-डगर में
दो ही मौसम: पतझड़, सावन
बाजी पायल छन-छन-छन-छन
स्व-मृदा हुई स्मृतिशेष
सबके अरमानों की हुई आहुति पेश
उसने हँस के कह दी- स्वीटी!
सब हैं कड़वे, हम ही मीठी
कल्पित मन के स्वप्न हुए साकार
मन में मोद, सिर गोद, तन में हुई झनकार
उर्मियों से मिली उर्मियाँ, हो गयी ललकार
युग्मेच्छित नयनों में छा गया अंधकार
निधि बोली — दैट इज सो क्यूट यार !
(३) कथा
कितने मुदित हुए थे सब जन
जब आया था लाल
मनवांछित संतान मिला था
हुआ था उन्नत भाल
किलकारी गूँजी थी घर में
अहा! वो स्वर्णिम-काल
उम्मीदें बढ़ती ही रह गयी
जैसे गुज़रे साल
कि यौवन आन पड़ा!
और निमिष-मात्र में हो गया कमाल
उर का दूध, प्रेम स्वजनों का
हो गया ज्यों बेकार
पिता स्तब्ध,
सिकुड़ा उनके वक्षों का विस्फार
और उस पार
निधि बोली — दैट इज सो क्यूट यार !
(४) सार
पिता मूक, माता बधिर
पितर हुए लाचार
कोई जीता, कोई गया हार
कभी बजी शहनाई, कभी बजा सितार
निधि बोली — दैट इज सो क्यूट यार !
नोट- क्रिसमस के दिन निधि को सूली चढ़ाना ध्येय नहीं. न ही यह ध्येय है कि निधि समाज की नुमाइंदगी करती है. समय अहिल्या, सीता और सावित्री की साक्षी रहेगी और सृष्टि उनके त्याग से प्रकाशित रहेगी।
-ओंकारनाथ मिश्र
(वृन्दावन, २५ दिसंबर २०२०)
हृदय आनंद से भर गया आपको देखकर । बस ... बहुत अच्छा लगा ।
ReplyDeleteआपका नाम भी बहुत कुछ कह रहा है ।
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२६-१२-२०२०) को 'यादें' (चर्चा अंक- ३९२७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
वाह
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteअति सुन्दर।
ReplyDeleteसुन्दर सृजन।
ReplyDeleteअद्भुत।
ReplyDeleteअचंभित करता सृजन।
आपकी रचना, विषय और चयनित शब्द हमेशा से ही मुझे आकर्षित करते रहे हैं ... कई कई दिनों बाद आपकी रचना पढने को मिलती है और हमेशा विषय, लफ्ज़, भाव और अदायगी अचंभित कर देती है ...
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति अद्भुत और क्यूट है। आपको नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।
ReplyDeletenice information
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