शीत शैशव में तरंगित, पुष्प, तरुणाई की ओर
शरद का यह चंद्र कीर्णित जोश-ओ-जुन्हाई की ओर
नभ में रौरव-नाद, द्युतिमा, हर दिशा आठों पहर
बादलों का सतत स्यंदन, वात पुरवाई की ओर
खेत सारे डूबे - डूबे, है किसानी शाप सी
कुछ तो सोचेंगे निगेहबाँ, इनके भरपाई की ओर
उर्मियों को बाँध, उन्मन, तप्त सी एक शशिमुखी
चल पड़ी है आज फिर से 'तुमुल-तन्हाई' की ओर
रह सकेंगे कब तलक हम इस नगर के पाश में
बैठ रेलिया, चल पड़ेंगे, गोरी हरजाई की ओर
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ओंकारनाथ मिश्र, लखनऊ
अक्टूबर १०, २०२२