Tuesday, March 24, 2020

फुर्सत नहीं थी

फुर्सत नहीं थी 

कहनी थी, मुसलसल बात, मगर फुर्सत नहीं थी 
सफर चलता रहा, सरे-रात, मगर फुर्सत नहीं थी 

मुहब्बत में, असीरी का, बयाँ  हमसे ना पूछो 
उलझे थे कई मसलात, मगर फुर्सत नहीं थी

यही एक खेल चलता था सुबह के पौ से शब तक
कभी शह था, कभी थी मात, मगर फुर्सत नहीं थी

दयार-ए -ग़ैर  में तश्नालबी थी एक रवायत 
चाहे हो बादलों का साथ, मगर फुर्सत नहीं थी

वो फिर हँसती रही , कहती रही , कहती रही  
यही कि, सुन लो मेरी बात, मगर फुर्सत नहीं थी

दिखाया ‘ख़ाक’ को फिर से  हयात-ऐ-ग़म ने जलवा
लगाया था किसी ने घात,  मगर फुर्सत नहीं थी

-ओंकारनाथ मिश्र 
(वृंदावन , २५ मार्च २०२०)

4 comments:

  1. आदरणीया/आदरणीय आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-२ हेतु नामित की गयी है। )

    'बुधवार' ०८ अप्रैल २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य"

    https://loktantrasanvad.blogspot.com/2020/04/blog-post_8.html

    https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।


    आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'

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  2. ओहोहो
    मजा आ गया भाई साब.
    क्या गजब लेखनी है आपकी.
    तिश्नालबी थी एक रवायत...स्वाद आ गया.
    पहली बार पढ़ा आपको. बहुत शानदार लिखते हैं आप.
    मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत रहेगा- आइयेगा-
    नई रचना- एक भी दुकां नहीं थोड़े से कर्जे के लिए 

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  3. बहुत सुन्दर भाव और यथार्थ दर्शाती पंक्तियाँ गजब लेखनी है

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