पिछले कुछ दिनों से सतपुरा के जंगलों में घूम रहा हूँ. प्रकृति के मध्य से सूर्य, चन्द्रमा और मौसम की मादकता पा रहा हूँ. कभी कभी उनकी तस्वीरें भी ले रहा हूँ. आज की कविता उन्हीं तस्वीरों की बानगी है.
ले लिया मौसम ने करवट
व्योम से बादल गए हट
कनक-नभ से विहग बोले
‘तल्प-प्रेमी' उठो झटपट
ले लिया मौसम ने करवट
खिली कोंढ़ी, जगे माली
कुसुम-पूरित हुई डाली
गई पीछे रात काली
वेणी भरने चली आली
श्लेष-वांछित, तप्त-रदपट
ले लिया मौसम ने करवट
रहे कब तक धरती सोती
किसानों ने खेत जोती
क्पोत-क्पोती कब से बैठे
फिर भी क्यों न बात होती
यही पृच्छा मन में उत्कट
ले लिया मौसम ने करवट
जग उठे हैं श्वान सारे
दग्ध, प्यासे, मिलन-प्यारे
आह! उनकी वेदना है
क्यों कोई फिर ताने मारे
वो उठायें हूक
निर्भट!
ले लिया मौसम ने करवट
नीर झहरे, गीत गाये
हरित तृण-तृण मुस्कुराएँ
हो सुहागिन सांझ बेला
भरे मन में लहर लाये
प्राणवन्तिनी! खोल
दो लट
ले लिया मौसम ने करवट
तमनगर प्रक्षीण है अब
निष्तुषित कलु-भाव है सब
भर चुका है सकल अंबर
ज्वाला के ही विविध छब-ढब
ह्रदय-उर्मि छुए तट-तट
ले लिया मौसम ने करवट
हर तरफ ज्यों हास का, ज्यों
लास क्षण
मधु मन में, मधु तन में,
मधु कण-कण
वाह! कितने ठसक से ये बहक
निकली
हरने गावों-नगरों से ये सारे
मन-व्रण
तृषावंतों! पियो
गटगट आज शत-घट
ले लिया मौसम ने करवट