Sunday, August 23, 2020
फिर से बोसा
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कोसा?? तो ले फिर से बोसा जब हाथ धरा तो फिर ये क्यों एक चंचल लाल की चाल ही है माना ये सच, बदहाल सही पर बदहाली की यही ख़ुशी कितने चितवन ...
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Sunday, May 17, 2020
भोर सुहानी
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एक चंदा था, ध्रुवतारा था लगता वो हद से प्यारा था एक लम्बी रात का सूनापन और भोर सुहानी की आशा कितनी काली वो रातें थी आली की खाल...
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Tuesday, March 24, 2020
फुर्सत नहीं थी
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फुर्सत नहीं थी कहनी थी, मुसलसल बात, मगर फुर्सत नहीं थी सफर चलता रहा, सरे-रात, मगर फुर्सत नहीं थी मुहब्बत में, असीरी का, बयाँ ह...
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Friday, March 23, 2018
भ्रमरगीत
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फिरूँ यत्र-तत्र मैं तृषित अधर हे कली-आली! मैं श्याम भ्रमर मैं सब चितवन से दूर, श्रांत अपने गह्वर में मैं विस्मृत था , बेनूर ,...
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Friday, August 18, 2017
जब हवा का झोंका चलता है
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घन घनघोर घिरे अंबर जड़ संभल हुआ तुरत सत्वर ढन ढनन ढनन गूंजा चहुँओर बिजली कड़की फिर मचा शोर कृषको ने सोचा आ ही गयी और बैठ गए धर हाथ...
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Sunday, November 13, 2016
मुरैनावाले के लिए
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तुम्हारे शब्द ध्वनिमात्र थे या खून का रिसता दरिया पता नहीं चल पाया कि तुम्हारे आत्मा की आवाज़ या तुम्हारे सिगरेट का का धुंआ इसी व्य...
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Saturday, October 22, 2016
विचयन-प्रकाश
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तुमने मुझे खून दिया मैंने तुम्हारा खून लिया तुमने मुझे खून से सींचा और मैंने चाक़ू मुट्ठी में भींचा शब्द नवजात की तरह नंगे हो गए ...
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