Monday, August 31, 2015
प्यास
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मैंने उस छोर पर देखा था विशाल जलराशि और पास आकर देखा तो सब मृगजल था सब रेगिस्तान था मकानों में लोग थे, हवस और शान्ति थी वातायन थ...
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Monday, July 27, 2015
एक रुदाद
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सर कलम करके वो आये हाथ अपने धो लिए था लिखा रोना हमारे भाग में हम रो लिए कह रहे थे सबसे वो करते हुए ज़िक्र-ए-रहम तुम मनाओ खैर लेना च...
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Tuesday, July 7, 2015
दो बूदों के बाद
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मानसूनी खेतों की हरीतिमा देखकर जब मेरा मन पुलकित होकर झूम उठता है तो मैं सोचता हूँ ― कि हमारे किसानों का मन कितना झूमता होगा वो ...
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Monday, June 29, 2015
एक साँप के प्रति
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बात बस इतनी सी थी कि उसने अपनी टाँगे मेरे टाँगों पर रख दी थी और सोचा था कि जैसे नदी ने अपने में आकाश भर रखा है जैसे एक ऑक्टोपस ने ...
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Saturday, May 30, 2015
स्वप्न जुगुप्सा
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आह! अगर सांत होती वह नांत कथा झाँक रहा था सूक्ष्म विवरों से स्वप्न लोक का पुनीत प्रकाश यहाँ आस, वहां भास, किलकारियां, अट्टाहास ध...
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Friday, April 10, 2015
तुम हड्डियाँ चबाओ
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जो बिलखते हैं उन्हें और बिलखाओ मगर मेरे दोस्त! तुम हड्डियाँ चबाओ यहाँ जगत की उर्वशियाँ और सबके कुबेर कोई आधा-पौने नहीं, सब सेर सवा...
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Friday, March 27, 2015
कुसुम की असमर्थता
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ले मृदा से खनिज पोषण पौध बढ़ता जा रहा था शाख धर नव, पर्ण धर नव सबकी दृष्टि, भा रहा था और बसंती पवन ने आते ना जाने क्या किया थ...
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Saturday, February 28, 2015
अपनी-अपनी लड़ाई में
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अपनी-अपनी लड़ाई में बीतता है दिन-रात अपनी-अपनी लड़ाई में व्यस्त है गाछ-पात प्रस्फुटन, पल्लवन, पुष्पण से आगे भी है लड़ाई और शिथिल हो कर ...
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Saturday, January 31, 2015
सहर, और कितनी दूर?
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भीतकारी निशा है यह किसके मन को भाती रे, साथी रे सहर, और कितनी दूर? इस दीये का क्या करें नूर जो ना लाती रे, साथी रे सहर, और कित...
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