Friday, March 27, 2015
कुसुम की असमर्थता
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ले मृदा से खनिज पोषण पौध बढ़ता जा रहा था शाख धर नव, पर्ण धर नव सबकी दृष्टि, भा रहा था और बसंती पवन ने आते ना जाने क्या किया थ...
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Saturday, February 28, 2015
अपनी-अपनी लड़ाई में
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अपनी-अपनी लड़ाई में बीतता है दिन-रात अपनी-अपनी लड़ाई में व्यस्त है गाछ-पात प्रस्फुटन, पल्लवन, पुष्पण से आगे भी है लड़ाई और शिथिल हो कर ...
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Saturday, January 31, 2015
सहर, और कितनी दूर?
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भीतकारी निशा है यह किसके मन को भाती रे, साथी रे सहर, और कितनी दूर? इस दीये का क्या करें नूर जो ना लाती रे, साथी रे सहर, और कित...
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Saturday, January 10, 2015
दो! आखिरी है आज की
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कि साकी! अब जियादा जोर ना हो और पियालों का भी कोई शोर ना हो रख रहे हैं लाज तेरे हाथ की दो! आखिरी है आज की कि साकी! पी भी ले...
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Monday, January 5, 2015
स्टॉकिंग As: भूत का भूत
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कब्र पर घास, घास या दूब दूब पड़ पड़ा-पड़ा ओस गया उब उब गए थे जॉन ‘पा’ कि चल रहा है क्या समय से पूर्व मैं धरा में क्यों गया धरा शा...
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Monday, December 15, 2014
दस साल बाद
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दस साल बाद श्वेत, पीत और रक्त-वर्णी कुसुमों से इतर ढूंढता हूँ एक ‘’नील-कुसुम’’ तत्पर, सद्क्षण, गमसुम-गुमसुम चंद्रमुखी! खोयी है आक...
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Wednesday, November 19, 2014
शीत के दिन आ गए हैं
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शीत के दिन आ गए हैं घन गगन पर छा गए है पत्ते भी मुरझा गए हैं और प्रगल्भा पूछती है कब मिलोगे कब तलक कविता-मधुर से तुम छलोगे फिर व...
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Friday, November 14, 2014
अस्तित्व बोध
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कुछ अधूरे शब्द कुछ अधूरी ग़ज़लें कुछ अधूरी कवितायें यह अधूरा होश शब्द, स्वप्न, साँसों में उलझा मन और मन का यह अधूरापन जो मेरी ता...
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Thursday, October 30, 2014
विचिंतन
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कब तक मिथ्या के आवरण में रौशनी भ्रम देती रहेगी कब तक भ्रामक रंगों में बहकर उम्मीद अपनी नैया खेती रहेगी ? आप पन्नों में लिपटे इति...
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