बातें अपने दिल की
Wednesday, November 19, 2014

शीत के दिन आ गए हैं

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शीत के दिन आ गए हैं घन गगन पर छा गए है पत्ते भी मुरझा गए हैं और प्रगल्भा पूछती है कब मिलोगे कब तलक कविता-मधुर से तुम छलोगे फिर व...
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Friday, November 14, 2014

अस्तित्व बोध

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कुछ अधूरे शब्द कुछ अधूरी ग़ज़लें कुछ अधूरी कवितायें यह अधूरा होश शब्द, स्वप्न, साँसों में उलझा मन और मन का यह अधूरापन जो मेरी ता...
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Thursday, October 30, 2014

विचिंतन

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कब तक मिथ्या के आवरण में रौशनी भ्रम देती रहेगी कब तक भ्रामक रंगों में बहकर उम्मीद अपनी नैया खेती रहेगी ? आप पन्नों में लिपटे इति...
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Sunday, September 21, 2014

अणुमा-बोध

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इस अंतहीन विस्तार में मैं देखता हूँ चालाक, चतुर आँखें सुनता हूँ, वासना की लपलपाती जीभ पर दौड़ते वीर्यधारी महापुरुषों का उद्घोष घोर ...
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Saturday, September 6, 2014

आदमी क्या चाहता है?

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आमावस्या के टिमटिमाते तारों की फ़ौज के बीच से पूर्णिमा की निर्मल विभा के बीच भागते हुए मन बार-बार यही पूछता है- आदमी क्या चाहता है? ...
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Thursday, August 28, 2014

परिवर्तन

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विहान की पहली भास से दिवस के अवकाश तक पल-पल में सब, है जाता बदल परिवर्तन रहा अपनी चाल चल चढती, बढती, ढलती धूप रात्रि का भीतिकर ...
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Sunday, August 17, 2014

नमकीन बात

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इसमें कोई संदेह नहीं   आपका नमक खाया है खाया है, पसीने में बहाया है पर आपने शोणितपान करते कभी सोचा है रक्त में निहित सामुद्रिक स्वा...
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Friday, August 8, 2014

कुछ बातें

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कई वर्षो से मैंने यही महसूस किया कि थोड़ा सा मान-मर्दन, थोड़ा सा राष्ट्रवाद थोड़ा सा स्वाभिमान, थोड़ी सी आत्मा अगर मार दी जाए और थोड़ा ...
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