Showing posts with label
चाँद
.
Show all posts
Showing posts with label
चाँद
.
Show all posts
Friday, June 21, 2013
चकोर! जान चाँद को
›
जा चकोर! फिरते रहो इस छोर से उस छोर विरह वेदना में बहाते रहो नोर हर्ष के तर्ष में करते रहो लोल खोल ह्रदय से किलोल ...
34 comments:
Tuesday, May 7, 2013
चाँद से शिकायत
›
देख ली तुम्हारी हकीकत निर्जन, निर्वात, पथरीला यही सच है तुम्हारा झूठे मामा मेरे बचपन के पर-आभा से चमकने वाले क्यों मैं पूजूं तु...
15 comments:
Tuesday, November 20, 2012
अनबुझ प्यास
›
मैं प्यासा बैठा रहा बरगद के नीचे तुम्हारे इंतज़ार में हवा आयी, और जुगनुओं का झुण्ड इस विभावरी रात में सोचा था तुम्हे ...
10 comments:
Wednesday, August 29, 2012
›
ज़मीन ज़ुमाद, ना ज़ुमाद वक्त वही फैला आकाश, वही चाँद, वही टिमकते तारे हैं अब भी हीर है, राँझे हैं, और जमाने की दीवारें है कही ख...
›
Home
View web version