Saturday, August 11, 2012

मैं प्रतीक्षा में खड़ा हूँ


मैं प्रतीक्षा में खड़ा हूँ
एक दिन जब इस धरा पर
प्यार की कलियाँ खिलेंगी
और घृणा की दीवारें 
जड़ से हिलकर गिरेंगी
धर्म जात के नाम पर
रक्त सरिता  न बहेंगी

मैं प्रतीक्षा में खड़ा हूँ!

एक दिन जब सबके मुंह
हो  दो वक्त की रोटी
बीते ना किसी की जिंदगी
फुटपाथ पर सोती सोती
सबके तन  ढकने को हो 
कुर्ता, साड़ी और धोती

मैं प्रतीक्षा में खड़ा हूँ!

~ निहार रंजन (२-८-२०१२)

5 comments:

  1. परम प्रतीक्षा में प्रिये, रत रहिये दिन-रात |
    धीरज रखिये हृदय में, सुधरेंगे हालात |
    सुधरेंगे हालात, मिलेगी सबको रोटी |
    पर नेता की जात, नोचती बोटी बोटी |
    खोटापन भी जाय, यही करना है हिकमत|
    नहीं देश बिक जाय, खुदा की होवे रहमत ||

    dineshkidillagi.blogspot.com

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    1. बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ और उतना ही अच्छा व्यंग्य.

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  2. एक परिवर्तन की उम्मीद मन में जिलाए रखना ही कवि का धर्म है ...

    अच्छी रचना .....!!

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  3. पुरानी पोस्ट है, देखी नहीं थी मैंने.. आज हलचल से आना हो गया .. पढ़ तो वहीँ लिया मैंने .. लेकिन यहाँ ये बताये रहा न गया कि वाकई कम शब्दों में गहन भाव के साथ बेजोड़ रचना है।

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